जनजागृति एकता विचार गोष्ठी

जनजागृति एकता विचार गोष्ठी

साथियों,आने वाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और शैक्षिक  जानकार लोगों से अपील है कि निषाद पार्टी की सदस्यता ग्रहण करें तथा संवैधनिक आरक्षण मझवार, तरमाली पासी, शिल्पकार, तुरैहा आदि  के समर्थन में आएं। अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी कराने हेतु निषाद पार्टी के सक्रिय एवं समर्पित कार्यकर्ताओं, समर्थकों की एकजुटता की आवश्यकता है

आप सभी को विचारणीय प्रमाणिक दस्तावेजों के विषय में अवगत करना है कि भारत के संविधान की धारा 341, 342 के विपरीत उ.प्र. सरकार द्वारा अनुसूचित जाति मझवार, तरमाली पासी, शिल्पकार, तुरैहा आदि के जातिगत/पर्यायवाची नामों को पिछड़े वर्ग की सूची में कैसे रखा गया ?अनुसूचित जाति बेलदार, मझवार, पासी-तरमाली, शिल्पकार, तुरैहा समूह के जातिगत/पर्यायवाची नामों के सम्बन्ध में वर्ष 1961 में गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भारत के प्रत्येक राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश के लिए भारत के संविधान की अनुसूची में अंकित अनुसूचित जाति के पर्यायावाची/जातिगत/समतुल्य नामों की सूची जनगणना हेतु प्रकाशित की गयी है। उ.प्र. राज्य के लिए भारत के संविधान में अनुसूची में अंकित अनुसूचित जाति के पर्यायावाची/ जातिगत/ समतुल्य नामों की सूची में क्रम संख्या 51 पर मझवार जिसके जातिगत/ पर्यायवाची/ समतुल्य नाम मांझी, मुजाबिर, राजगोंड, मल्लाह, केवट और गोंड मझवार, क्रम संख्या 57 पर पासी-तरमाली के जातिगत/पर्यायवाची/समतुल्य नाम धेवा, राजपासी, तिरसुलिहा, कैथवास, पहारी, भर, कैथवास पासी, पंथारी, तिरमूली, दुबरिया, राउत, क्रम संख्या 63 पर शिल्पकार जिसके जातिगत/पर्यायवाची/समतुल्य नाम टमटा, हंकिया, कोली, चुनेर, बैरी, बादी, मिरासी, लोहार, राज (ओरह), चानियाल, बारे, चर्मकाई, अगरी, मौर, बखूरी, ढाेली, बधाई, धनिक भुल, हरकिया, भाट, दमाई, तिरूआ, रूरिया, डबराल (सुनार नाई यदि हरिजन है), दर्जी, जगरिया, पहरी, बढ़ई (कारपेंटर), आर्या शिल्कपार, तेली, बारी, हुरकिया, मोची, तूरी, पतार, गरिया, मिस्त्री, कुम्हार, ओड, धुनर, चर्मकार चमार, जागी, ढाकी, जद, ढोली या औजी, नाथ, झुमरिया अंकित हैं।

यहां पर यह उल्लेखनीय है कि क्रम संख्या 18 पर अंकित बेलदार और क्रम संख्या 64 पर अंकित तुरैहा के समक्ष जातिगत/पर्यायवाची/समतुल्य नाम नही अंकित है। क्रम संख्या 66 पर अनुसूचित जनजाति गोंड जिसके जातिगत/पर्यायवाची/समतुल्य नाम धुरिया, नायक, ओझा, पठारी, राजगोंड, पठान कहार, गोड़िया, बाथम, सिमर (धीमर), सोसिया (सोरैहिया), रैकवार हैं मे से पठान कहार, गोड़िया, बाथम, सिमर (धीमर), सोसिया (सोरैहिया), रैकवार को त्रुटिवश अनुसूचित जाति गोंड कें जातिगत/पयार्यवाची नाम धुरिया, नायक, ओझा, पठारी और राजगोंड को उ.प्र. के जनपद सिद्धार्थनगर, महराजगंज, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर व सोनभद्र में अनुसूचित जनजाति में एवं उ.प्र. के शेष जनपदों मे  अनुसूचित जाति की सूची में अंकित किये गये, शेष अनुसूचित जाति गोंड के जातिगत/पर्यायवाची नाम पठान कहार, गोड़िया, बाथम, सिमर (धीमर), सोसिया (सोरैहिया), रैकवार को उ.प्र. की न तो अनुसूचित जाति और न अनुसूचित जनजाति में अंकित किया गया जिसके कारण अनुसूचित जाति गोंड के जातिगत/पर्यायवाची नाम पठान कहार, गोड़िया, बाथम, सिमर (धीमर), सोसिया (सोरैहिया), रैकवार को न तो अनुसूचित जाति और न अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का लाभ मिल रहा है।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत मांगी गयी सूचना के क्रम में सहायक निदेशक एवं केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा अपने पत्र दिनांक 16.12.2017 द्वारा अवगत कराया गया है कि वर्ष 1961 में जनगणना संगठन अ.ज.जा. के सम्बन्धित अधिसूचित उप-समूह/पर्यायवाचियों के साथ जोड़ी गई अलग-अलग अनुसूचित जातियों (अ.जा.) की जनसंख्या संबन्धी आंकड़ों का भी सारणीकरण औैर प्रकाशन कर रहा है। मुख्य अ.जा./अ.ज.जा. के उप समूहों/पर्यायों की संख्या/आकड़े अलग से प्राकशित नहीं किये जाते है बल्कि उन्हे मुख्य अ.जा./अ.ज.जा. के साथ मिला दिया जाता है।

संविधान की धारा 341, 342 में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति में संशोधन संसद के दोनों सदनों (लोक सभा व राज्य सभा) में पारित होने के बाद महामहिम राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षरोंपरान्त संम्भव है। संविधान की इस व्यवस्था के विपरीत उ.प्र. राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति मझवार, पासी तरमाली, शिल्पकार, तुरैहा, गोंड के जातिगत पर्यायवाची नामों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की सेंसस मैनुअल 1961 सूची से हटाकर पिछड़े वर्ग की सूची में रखा तो उ.प्र. राज्य सरकार ने भी भारत के संविधान की धारा 341, 342 का उल्लंघन किया है जिसके लिए निषाद पार्टी को छोड़कर कोई भी राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन/कार्यकर्ता कुछ  भी विचार व्यक्त नही कर रहे हैं।

अवगत करना है सेंसस मैनुअल पार्ट फर्स्ट फॉर उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के पर्यायवाची एवं जेनेरिक नाम दिए गए हैं। इसी मैनुअल के “ऐपेन्डिक्स एफ” के अंतर्गत अंकित अनुसूचित जातियों की सूची के क्रमांक 51 के सामने मझवार को माझी, केवट, मल्लाह, गोड़, राजगोड़ को मझवार की पर्यायवाची एवं जेनेरिक (वंशज) के रूप में मझवार दर्शाया एवं परिभाषित किया गया है। देश की आजादी के बाद से आज तक शासन की दृष्टि में उपरोक्त पर्यायवाची जातियां सवैधानिक रूप से मझवार है यह विधिक रूप से सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि मझवार, माझी, केवट, मल्लाह परस्पर पर्यायवाची एवं समानार्थी शब्द हैं। सेसस मैनुअल पार्ट फर्स्ट फॉर उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के पर्यायवाची एवं जेनेरिक नाम का आधार मानकर क्रमांक 4 पर रघुवंशी ठाकुर को बहेलिया का, क्रमांक 11 पर मेंहतर जमादार को बाल्मीकि का जाति प्रमाण पत्र, क्रमांक 24 पर अंकित मोची, रेदास, उतरहा, दखिनहा, रविदास, रैदास आदि को चमार का प्रमाण पत्र, क्रमांक 56 पर पथरकटट् को दबगर का, क्रमांक 30 पर बरेठा, रजक, कनौजिया को धोबी का अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र आसानी से निर्गत हो रहा है। चाहे जो भी टाइटल या सर नेम लगाएं जबकि इसी मैनुअल “ऐपेन्डिक्स एफ” के अंतर्गत अंकित अनुसूचित जातियों की सूची के क्रमांक 51 के सामने मझवार को माझी केवट, मल्लाह, गोड़, राजगोड़ को मझवार का पर्यायवाची एवं जैनेरिक (वंशज) के रूप में मझवार दर्शाया एवं परिभाषित किया गया है।

निदेशक हरिजन तथा समाज कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश के पत्राक संख्या “5217\33 74\23″ दिनांक 18.03.1975 के द्वारा पूरे उत्तर प्रदेश के मझवार जाति को अनुसूचित जाति माना गया है और यह पूरे प्रदेश में निवास करती है।

वर्तमान समय में निषाद समाज मछुआ समुदाय उत्तर प्रदेश की आरक्षण व्यवस्था में कहीं नहीं रह गया है जिस कारण मछुआ समुदाय संवैधानिक अधिकारों एवं संरक्षण से वंचित होने के कारण विकास की मुख्यधारा से पिछड़ गया है।

अवगत हो कि जैसे उत्तराखंड सरकार ने शिल्पकार को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र उनकी सभी उप जातियों को देने के लिए सूची जारी कर शासनादेश संख्या 33-30/17-1/ 2013-13-15/2013 16 दिसंबर 2013 को यह कहते हुए की शिल्पकार जाति नहीं है बल्कि जातियों का समूह है और यह पिछड़ी जाति में नहीं बल्कि अनुसूचित जाति में आते हैं। जिसमें तेली, बड़ई, लोहार, कुम्हार, प्रजापति शिल्पकार सूची में सम्मिलित हैं जारी किया है।

मछुवा समुदाय की सभी उपजातियां उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति की सूची के क्रम सं.-18 में बेलदार, क्रम सं.-36 में गोड़, क्रम सं.-53 में मझवार, क्रम सं.-66 में तुरैहा हैं जो मछुवा समुदाय की कहार कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, रैकवार, धीवर, बिन्द, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी, मछुवा उपजातियां क्रम सं.-18. बेलदार के साथ बिन्द, क्रम सं.-36. गोड़ के साथ गोड़िया, कहार, कश्यप, बाथम, क्रम सं.-53. मझवार के साथ मल्लाह, केवट, मांझी, निषाद, मछुवा व क्रम सं.-66. तुरैहा के साथ तुरहा, धीमर, धीवर, क्रम सं. 59 पासी, तरमाली के साथ भर, राजभर व क्रम सं.-65 में शिल्पकार जो कुम्हार, प्रजापति की पर्यायवाची उपजातियों को परिभाषित किया जाना है। उक्त जातियों का आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता है। खान-पान, रहन-सहन एक ही है।

आरक्षण के हकदार मछुआ समुदाय क्यों?

1891 के समुदायिक जनगणना के अनुसार श्री आर.बी. रसेल व हीरा लाल द्वारा 1916 में लिखित पुस्तक ‘‘दि ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ सेन्ट्रल प्रोविन्सेज’’ के वाल्यूम-1 के अंतिम भाग में ग्लोसरी नाम से जातियों का जो शब्दकोश दिया गया है, उसके पृष्ठ- 388 पर मांझी को केवट की पर्यायवाची व मजवार को केवट तथा बोटमैन में सम्मिलित दर्शाया गया है। मजवार शब्द मझवार का अपभ्रंश है। यूनाइटेड प्रोविन्सेज ऑफ आगरा एण्ड अवध पार्ट-1 रिपोर्ट सेन्सस ऑफ इण्डिया-1931 के लिस्ट (ए) अनटचेबल एण्ड डिपेस्ट कास्ट्स की सूची के क्रमांक- 8 पर मझवार (मांझी) अंकित है। मा.उच्च न्यायालय इलाहाबाद खण्ड पीठ लखनऊ द्वारा याचिका संख्या-9312/1988 ओम प्रकाश बनाम उ.प्र. सरकार के निर्णय में मांझी को मझवार का पर्यायवाची बताया गया है। दि ट्राइबल रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट छिंदवाड़ा ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेन्ट मध्य प्रदेश शासन के अध्ययन प्रतिवेदन -1961 ‘‘दि ट्राइब्स ऑफ मध्य प्रदेश’’ के पृष्ठ-52, 53 पर मझवार नाम से दिये गये आलेख में मझवार, मांझी व मझिया बताया गया है। इन्हें बोटमैन, फिशरमेन व फेरीमैन भी कहा गया है।

भारत सरकार के इन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के पूर्व डायरेक्टर जनरल एवं आई.ए.एस. अधिकारी डा. के.एस.सिहं द्वारा कराये गये वृहद सर्वेक्षण अध्ययन के आधार पर लिखित पुस्तक ‘‘पीपुल ऑफ इण्डिया’’ नेशनल सीरीज वॉल्यूम-3, दि शिड्यूल्ड ट्राइब्स के पृष्ठ 710 पर ‘‘मांझी आलेख में मांझी का अर्थ बोटमैन तथा मांझी को मल्लाह, केवट, नाविक का पर्यायवाची माना गया है। विभिन्न शब्दकोषों में मांझी का अर्थ केवट, मल्लाह, धीवर, धीमर, नाविक का ही उल्लेख मिलता है। इन्थ्रोपो लोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के पूर्व डायरेक्टर जनरल के.एस. सिंह द्वारा द शेड्यूल्ड कास्ट्स’’ के अनुसार मझवार व मांझी को परस्पर पर्यायवाची माना गया है। राधेमोहन बनाम दिल्ली परिवहन निगम के रिट पिटीशन सं.-2493/85 के निर्णय दिनांक-8 जनवरी, 1986 के अनुसार मल्लाह की पर्यायवाची केवट, मांझी, झीमर, धीवर आदि को माना गया है। 10 वर्षीय मत्स्य पालन पट्टा के लिए उ.प्र. सरकार द्वारा जारी शासनादेश में मछुवा समुदाय के अन्तर्गत मछुवा, केवट, मल्लाह, बिन्द, धीवर, धीमर, बाथम, रायकवार, मांझी, गोड़िया, कहार, तुरैहा या तुराहा जाति का उल्लेख किया गया है। रिट पीटीशन सं-1278 के संदर्भ में 25 फरवरी, 2005 के निर्णय के अनुसार तुरैहा समुदाय को धीमर जाति के रूप में निर्णित किया गया है। उत्तर प्रदेश भूमि प्रबंधक समिति नियम संग्रह (गांव समाज मैनुअल) के अनुसार मल्लाह का तात्पर्य मल्लाही का काम करने वाले समुदाय के अन्तर्गत आने वाली केवट, मल्लाह, कहार, गोड़िया, तुराहे, बिन्द, चांई, सुरैहा, मांझी, बाथम, भोई, धुरिया, धीवर, रायकवार और मझवार से है।

हरियाणा की कामन लिस्ट में क्रमांक 19 पर धीवर, मल्लाह, कश्यप, कहार, झीमर, धीमर एवं पंजाब की काॅमन लिस्ट के क्रमांक-35 पर धीमर, मल्लाह, कश्यप व महाराष्ट्र की काॅमन लिस्ट के क्रमांक 211 पर केवट, धीवर, मांझी, धीमर, मछुआ, गोड़िया कहार, धुरिया कहार, भोई वर्तमान में 2013 से निषाद, मल्लाह, नाविक को भी शामिल कर लिया गया है। मध्य प्रदेश की काॅमन लिस्ट के क्रमांक- 11 पर धीमर, भोई, कहार, धीवर, रायकवार, मल्लाह, तुरैहा और दिल्ली की सूची में मल्लाह के साथ निषाद, मांझी, केवट, धीवर, कश्यप, झीमर, कहार व राजस्थान की अन्य पिछड़े वर्ग की सूची के क्रमांक- 14 पर धीवर, कहार, भोई, कीर, मेहरा, मल्लाह, निषाद, मछुआरा आदि, छत्तीसगढ़ की पिछड़े वर्ग की सूची के क्रमांक- 18 पर धीमर, कहार, भोई, धीवर, मल्लाह, तुरहा, केवट, कैवर्त, रायकवार, कीर, सोन्धिया आदि जातियों को सूचीबद्ध किया गया है। मल्लाह, मांझी, निषाद, केवट, धीवर, बिन्द, तुरहा, धीमर, कहार, कश्यप, गोड़िया, रायकवार, धुरिया, तुरैहा आदि जातियां किसी न किसी रूप में मझवार, मांझी की ही पर्यायवाची जातियां हैं। सेन्सस-1961 के क्रमांक- 59 पर पासी, तड़माली की पर्यायवाची भर, क्रमांक- 65 पर शिल्पकार की पर्यायवाची कुम्हार को माना गया है। अतिपिछड़ी जातियों के पास पोलिटिकल गाड फादर व पोलिटिकल साउण्ड न होने के कारण उक्त जातियां संविधान प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों से वंचित की जाती रही हैं। 1978 में जनता पार्टी सरकार द्वारा अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में मल्लाह, केवट, कहार, धीवर, बिन्द, कुम्हार, भर, राजभर को शामिल कर लिये जाने के कारण इन जातियों को मझवार, तुरैहा, गोड़, पासी, तड़माली, शिल्पकार आदि के नाम से अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र निर्गत करने में तहसील कर्मियों व राजस्व अधिकारियों द्वारा अड़चन पैदा की जाने लगी।

31 दिसम्बर, 2016 को कार्मिक अनुभाग-2 संख्या-4 (1)/2002-का-2 के आधार पर अपर मुख्य सचिव ने अधिसूचना जारी करते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम-1994 (उ.प्र. अधिनियम संख्या-4 सन् 1994) की धारा-13 के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए अतिपिछड़ी जातियों कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धिमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ को पिछड़े वर्ग के बजाय अनुसूचित जाति का लाभ देने का सभी विभागाध्यक्षों को आदेशित किया है।

शासनादेश संख्या-1442 छब्बीस- 818-1957 दिनांक- 22 मई, 1997 का आंशिक संशोधन करते हुए भारत सरकार द्वारा पारित अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 दिनांक- 27 जुलाई, 1977 को प्रभावी कर दिया गया। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 29 अगस्त, 1977 को जारी शासनादेश संख्या-6744ध्छब्बीस-77-17 (21)-74 के आधार पर अनुसूचित जाति की सूची के क्रमांक-36 पर गोड़, क्रमांक-53 मझवार, 59 पर पासी, तड़माली, 65 पर शिल्पकार व 66 पर तुरैहा जाति अंकित है। 17 अतिपिछड़ी जातियों में 13 उपजातियाँ मझवार, गोड़, तुरैहा की पर्यायवाची व वंशानुगत नाम है। गोड़, मझवार, पासी, तड़माली, शिल्पकार व तुरैहा जाति नहीं है बल्कि उपजातियों एवं पर्यायवाची जातियों का समूह है।

सेन्सस ऑफ इण्डिया-1961 अपेंडाईसेस टू सेन्सस मैनुअल पार्ट-1 फॉर उत्तर प्रदेश की अपेंडिक्स-एफ लिस्ट-1 के अनुसार क्रमांक-51 पर अनुसूचित जाति मझवार की पर्यायवाची या जेनरिक नेम्स मांझी, मुजाबिर, राजगोड़, मल्लाह, केवट, गोड़ मझवार को माना गया है। इसी सूची के क्रमांक- 24 पर चमार, धुसिया, झुसिया या जाटव, जाति की पर्यायवाची व वंशानुगत नाम गहरवार, अहिरवार, जटीवा, कुरील, रैदास, दोहर, रविदास, चमकाता, भगत, चर्मकार, जैसवार, रैया, दोहरा, धौंसियार, पिपैल, कर्दम, नीम, दौबरे, मोची, उतरहा, दखिनहा का उल्लेख है। इन सभी को चमार या जाटव का प्रमाण-पत्र निर्बाध रूप से जारी किया जाता है। लेकिन दूसरी तरफ जब मझवार का प्रमाण-पत्र मांगा जाता है, तो तहसील कर्मियों द्वारा मल्लाह, मांझी, केवट, गोड़िया आदि बताकर आवेदन पत्र निरस्त कर दिया जाता है।

उ.प्र की मछुआ समुदाय की अतिपिछड़ी जातियों जिसमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, रैकवार, धीवर, बिन्द, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी, मछुवा, भर, और राजभर जातियां जो संविधान की अनुसूचित जातियों की समूहों की सूची में 1950 से शामिल है। परिभाषित करने हेतु उ.प्र. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ के माध्यम से प्रश्नगत मछुआ समुदाय सहित सभी अतिपिछड़ी जातियों के सम्बन्ध में विस्तृत अध्ययन कराया गया था। संस्थान द्वारा किये गये अध्ययन तथा उनकी रिपोर्ट भारत सरकार के पत्र सं0-12016\25\2001-एस.सी.डी. (आर.एल. सेल) यू.पी. दिनांक-11.04.2008 द्वारा चाही गयी। 18 बिन्दुओं पर सूचनाएं राज्य सरकार को उपलब्ध करायी गयी थी। मछुआ समुदाय सहित सभी अतिपिछड़ी जातियां अनुसूचित जाति में शामिल है परिभाषित किये जाने की सभी पात्रताएं, अर्हताएं और योग्यताएं रखती है विस्तृत नृजातीय अध्ययन रिपोर्ट सहित सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली को 15.02.2013 को भेजा गया था। भारत सरकार ने महारजिस्ट्रार को विचार-विमर्श हेतु प्रस्ताव दिनांक-19.02.2013 को भेजा था। जिसमें महारजिस्ट्रार ने अपने पत्र दिनांक- 24.03. 2014 द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार से टिप्पणी के आलोक में प्रस्ताव के औचित्य की पुनर्समीक्षा करने का अनुरोध किया गया था।

यह बात भी गौर करने योग्य है कि ये मछुआ समुदाय की जातियां व उप-जातियां कई राज्यों में अनुसूचित जाति के अंतर्गत आती हैं तो कई राज्यों में धोखे से अन्य पिछड़ा वर्ग में, इसलिए भी इन्हें एक समान अनुसूचित जाति में करने की आवश्यकता है। देश में रोजगार की कमी होने के कारण देश के विभिन्न राज्यों में उक्त समुदाय के लोग निवास कर रहे हैं, जिनको सामान्य श्रेणी में गिना जाता है। इसलिए 2021 में प्रस्तावित जनगणना में जातिवार जनगणना करवाकर संख्या के आधार पर आरक्षण सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।

मछुआ समुदाय के आरक्षण पर डाका डालने और धोखेबाजी करने का पिछली सरकारों कुकृत्य भर सबुत

संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950 से सम्बंधित संवैधानिक फाइल संख्या 74\4\1950 पब्लिक गुम हो गई है। यह जानकारी आरटीआई के जरिए मिली है। आरटीआई के जरिए कुम्हार जाति को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने के प्रकरण में जानकारी मांगी गई थी जिसमें पत्रावली के गुम होने का खुलासा हुआ है। आरटीआई के अपील में केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा पारित आदेश संख्या सी.आई.सी.ध्सी.ए.\ए.\ 2012\001036 दिनांक 06\09\2012 के परिपालन में केन्द्रीय सूचना अधिकारी

 

एवं निदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली भारत सरकार द्वारा अपने पत्र संख्या 17020\126\2011 एस.सी.डी.(आर.एल.शैल) दिनांक 16\10\2012 के माध्यम से सूचित किया है कि सूचना से सम्बंधित पत्रावली संख्या 74\4\1950 पब्लिक गुम हो गई है। इस पत्रावली के गृहमंत्रालय के पास होने की सम्भावना जताई गई। गृहमंत्रालय के केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी नई दिल्ली द्वारा अपने पत्र संख्या 1\14\2012 ओ.आर.आर. दिनांक 29\12\2012 द्वारा अवगत कराया गया है कि सम्बंधित पत्रावली संख्या 74\4\1950 पब्लिक गृह मंत्रालय में नहीं है। संविधान से सम्बंधित पत्रावली कभी नष्ट नहीं की जाती है तथा ऐसी पत्रावलियां समय-समय पर प्रशासकीय मंत्रालय की ओर से नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया (एन.ए.आइ.) में हस्तांतरित की जाती है। उक्त पत्रावली या तो समाजिक न्याय एवं सहकारिता मंत्रालय के पास होगी अथवा नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया के पास होगी। दिनांक 06\11\2013 के पत्र संख्या 01\14\2012 ओ.आर.आर के माध्यम से जन सूचना अधिकारी गृहमंत्रालय ने अवगत कराया है कि एन.ए.आई. के आर्कियोलोजिस्ट द्वारा लिखित रूप से यह सूचित किया गया है कि यह फाइल एन.ए.आई. में कभी भेजी ही नहीं गई है तथा एन.ए.आई. के पास भेजी गई फाईलों की 146 पेज की सूची उपलब्ध कराई गई है जिसमें संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950 से सम्बंधित संवैधानिक फाइल संख्या 74\4\1950 पब्लिक नहीं है। अर्थात फाइल संख्या 74\4\1950 पब्लिक कभी भेजी ही नहीं गई है।

केन्द्रीय सूचना अधिकारी एवं निदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा पुनः अपने पत्र संख्या 17020\126\2011 एस.सी.डी. (आर.एल.शैल) दिनांक 21\12\2014 द्वारा अवगत कराया गया है कि संवैधानिक फाइल संख्या 74\4\1950 पब्लिक खोजी नहीं जा सकी है। पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि यह पत्रावली धोखेबाजी से जाटवों(चमार) को सभी पिछड़ी जातियों के हिस्से खिलाने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मा. मुकुल वासनिक एवं कुमारी शैलजा के द्वारा अपने अधिनस्थ अधिकारियों के साथ षड़यंत्र रचकर गायब कराईं गई है ताकि अतिपिछड़ी जातियों का अनुसूचित जाति का प्रकरण बाधित किया जा सके। इसलिए संसद मार्ग दिल्ली के थाने में 03\06\2019 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मा. मुकुल वासनिक एवं कुमारी शैलजा और उनके अधिनस्थ अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है।

सपा-बसपा-कांग्रेस के विश्वासघात को न भूले मछुआ समुदाय, अतिपिछ़डी जातियों की सफलता की राह में रोड़ यहीं दल खड़ा कर रहे हैं।

 

सवैंधानिक आरक्षण से वंचित अतिपिछड़ें लोग भली-भांति जानते है कि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से मिलकर 24/3/2014 को सत्रह जातियों का प्रस्ताव केन्द्र से निरस्त करा दिया था। इसी तरह बसपा ने 11/4/2008 को केन्द्र से सत्रह जातियों का प्रस्ताव वापस मंगा लिया था। मतलब साफ है कि समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस की तिकड़ी सत्रह जातियों के लिये सबसे घातक साबित हो रही है। समाजवादी पार्टी सत्रह जातियों को न्याय दिलाने का केवल दिखावा कर रही थी तो बसपा सीधे सीधे हमारे विरोध में है। कांग्रेस आरम्भ से ही हमारा अधिकार हड़प रही है इसलिये सत्रह अतिपिछड़ि जातियों के लिये समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस को सबक सिखाना हमारी पहली प्राथमिकता है और इसी प्राथमिकता को पूरा करने के लिए निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) संकल्पित है। अनुसूचित जाति का अधिकार पाने के लिये निषाद पार्टी हर संघर्ष के लिए तैयार है।

मझवार सहित अतिपिछड़ी जातियों का वास्तविक प्रकरण क्या है?

भारत सरकार के कानून मंत्रालय के पत्र संख्या एफ28/49-सी प्रमुख सचिव वाईके भंडारकर ने 19 दिसबंर 1949 को सभी राज्य सरकारों को एक शासनादेश जारी कर कहा कि 1931, 1941 में जो जातियां जैसी थी वैसी ही संविधान में मान ली गई। यह सिद्ध है की मछुआ समुदाय 1931 से अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध है मझवार 1950 से ही अनुसूचित जाति के रूप में उ प्र वॉल्यूम में 51वें क्रमांक पर अधिसूचित है, इसके आईड़ेटीफिकेशन की आवश्यकता है, पर मुलायम, अखिलेश, मायावती और कांग्रेस ने नया इनक्लूजन (समावेश या शामिल) बनाकर अनावश्यक विवाद पैदा कर दिया था जबकि केवल मझवार अनुसूचित जाति व शिल्पकार, बेलदार, गोड़, तुरैहा इत्यादि जातियों का संविधान आदेश 1950 की प्रस्तावना के अनुसार इसकी ऑल द सब कास्ट, ऑल द पार्टस, ऑल द रेसेज (अर्थात सभी जातियों को, उसके सभी वर्गों को और उसके सभी वंशजों को) आईडेटीफिकेशन किया जाना था परन्तु वोट बैंक के चक्कर में 2005 में मुलायम सिंह यादव व 2013 में अखिलेश यादव ने इसे नये सिरे से इनक्लूजन बनाकर प्रचारित कर दिया, इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मलाईदार एस.सी. लॉबी बसपा के लोग जो पीढ़ी दर पीढ़ी एस.सी. आरक्षण को हडप रहे हैं तथा मंझवार, शिल्पकार, बेलदार गोड तुरैहा आदि अनुसूचित जाति का हक सत्तर साल से हड़प रहे है, बसपा-सपा ने पहले कोर्ट से, फिर कांग्रेस से मिलकर इसे निरस्त करा दिया था तथा बार-बार कोर्ट में इनक्लूजन का केस बनाकर इसे स्टे करवाते रहे हैं।

अनुसूचित जातियों का इतिहास आजादी मिलने से पहले ही माननीय राय साहब रामचरन निषाद एंव डॉ अंबेडकर दलितों और पिछड़ों के विशेषाधिकारों की जोरदार वकालत कर रहे थे, इसलिए जब ब्रिटिश पार्लियामेंट में इनकी मांगों पर चर्चा हुई तो साइमन कमीशन भारत भेजा गया। भारत में माननीय राय साहब रामचरन निषाद एवं ड़ॉ अंबेडकर ने कमजोर वर्गों की तरफ से साइमन कमीशन के समक्ष लिखित ज्ञापन के माध्यम से मजबूती से पक्ष रखा। इस कमीशन की संस्तुति पर जे. एच. हट्टन तत्कालीन जनगणना आयुक्त ने बैकवर्ड/एक्सटीरियर कास्ट को चिन्हित कर 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के माध्यम से इन जातियों को विशेषाधिकार दिलाने का काम किया गया। मछुआ समुदाय भी 1931 के सर्वे में उ.प्र. में एक्सटीरियर कास्ट के रूप में चिन्हित किये गये थे तथा 1950 में शिल्पकार और मझवार, गोड़, तुरैहा, खरवार, बेलदार, खरोट, कोली के रूप में अनुसूचित जाति का अधिकार दिया गया था। आज भी हमें यह मिला हुआ है यह मामला नये सिरे से अनुसूचित जाति में शामिल होने का नहीं है पर इसको विरोधियों द्वारा इसी रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

यही संविधान आदेश 10 अगस्त 1950 को संविधान आदेश अनुसूचित जाति 1950 के रूप में पारित किया गया है इसमें हम शामिल हैं। जिसमें अनुसूचित जाति के नाम से कमजोर जातियों को सामान्य वर्ग की बराबरी पर लाने के लिए विशेष प्रावधान किये गये है, इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत शामिल किया गया है, हमारे समाज के लोगों को यह नहीं बताया गया है कि यह प्रावधान विकास के विशेष अवसर प्रदान करता है बल्कि गुमराह किया गया है कि इससे हमारा स्तर छोटा हो जाएगा और इस तरह भ्रमित करके पूरे मछुआरा समुदाय सहित अति पिछड़े वर्गों की बहुत बड़ी आबादी को उनके अधिकारों से वंचित रखकर आरक्षण की उनकी हिस्सेदारी को हड़प लिया गया। अभी भी यह हिस्सेदारी लूटी जा रही है इसलिए पूरे अनुसूचित जाति के आरक्षण की एकतरफा मलाई लूटने वाले अनुसूचित जाति के मलाईदार लोग सपा-बसप-कांग्रेस व बामसेफ के माध्यम से हमारे समाज को गुमराह करके हमें अनुसूचित जाति के अधिकार से वंचित रखने का कुचक्र रच रहे हैं। इस कुचक्र में हमारे ही समाज के कुछ अवांछनीय तत्व मोहरे के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं।

मछुआ समुदाय के भाग्य की रेखा को लिखने के लिए निषाद पार्टी सड़क से सदन तक वकालत कर रही है और करती रहेगी। दूसरा निषाद पार्टी के संघर्षों के परिणाम स्वरूप मत्स्य मंत्रालय अलग हो गया लेकिन अभी तक जमीनी स्तर पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। जिसकी सरकारें रहीं है सभी ने अपने लोगों को अधिकारी-कर्मचारी बनाया है। अधिकारी ऊपर से तो कमल वाले है अन्दर से हाथी-लाठी वाले है, तो जब कभी हमारा कोई कार्यकर्ता जाता है तो हाथी-लाठी के समय वाले जितने दरोगा-पुलिस और अधिकारी हैं वे मछुआरों के प्रति अन्दर से जलन रखते हैं और कहते हैं कि निषाद पार्टी कि वजह से साइकिल और हाथी हार गयी तो उन्हें पता चला पांच डंडे के जगह दस डंडे मार देते है। हमें और आपको जानना पड़ेगा की हमारी सरकार नहीं है मछुआरों के हित के लिए हम सरकार के सहयोगी है। भारतीय जनता पार्टी ने मछुआ समुदाय को 37 पार्टियों में से निषाद पार्टी को एक विशेष स्थान दिया और निषाद पार्टी को जन-जन तक प्रचार के माध्यम से टोपी-झंडे से और मछुआ समुदाय तो अपने मुद्दों को रखने और हल करने के विकल्पों का एक मंच दिया कि आप अपने मुद्दे को मंच से उठाएं और पुनः भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाएं। और अपने सहयोगी सांसदों द्वारा सदन में आरक्षण की आवाज उठवाएं और मुद्दा हल कराएं। मा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मंच से बोलने से हमारा मुद्दा बड़ा होकर समाधान हेतु सदन के पटल पर अंतिम फैसले हेतु पहुंच गया है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मौजूदा गृहमंत्री माननीय अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जी से अपनी वकालत करने का अवसर प्राप्त हो गया है। निषाद पार्टी आज वकालत करेगी कल जजमेंट भी मिल जायेगा। अगर हम गठबंधन से बाहर रहते तो कैसे हम कैसे आवाज उठाते और मछुआरों के हितों की कैसे वकालत कर पाते। कैसे अपने पक्ष में जजमेंट करवा लेने के लायक बन पाते। तत्काल में अगर जजमेंट नहीं हो पा रहा है तो उसपर विचार किया जा रहा है।

पार्टी जिसका स्पष्ट ध्येय, नीति, सिद्धान्त एवं विशेष प्रकार की कार्यप्रणाली है। उद्देश्यपूर्ति हेतु अनुशासित कार्यकर्ताओं की खोज एवं पार्टी कार्यकारणी गठन हेतु पहले पूरे देश एवं प्रदेश में राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के माध्यम से ऐतिहासिक, सामाजिक, वैचारिक, राजनैतिक और वोटर कैडर से निर्बलों, शोषितों एवं वंचितो को जानकार, समझदार, ज्ञानवान एवं होशियार बनाकर अनुशासित कार्यकर्ताओ की फौज तैयार किया है।

पार्टी जिसमें कई प्रदेशो तथा उत्तर प्रदेश के लगभग ज्यादातर जिलो के सैकड़ो लोग मिलकर 2015 में निर्बल ईण्डियन शोषित हमारा आम दल कार्यकारिणी गठन कर निर्वाचन आयोग से 16 अगस्त 2016 पंजीकृत कराकर 2017 में विधान सभा चुनाव लड़ाकर राजनैतिक चेतना विहिन समाज में चेतना लाकर एक सीट जितकर, 50 सीटो पर बेहतर प्रदर्शन कर 70 वर्षों का जंगल राज खत्म कर दिया।

पार्टी जिसके वजूद से पूर्व लोग अनेको प्रकार की भ्रांतियां फैलाते थे कि डाॅ. संजय निषाद जी पार्टी नहीं बनायेंगे, पंजीकृत नहीं करायेंगे, जब पार्टी पंजीकृत हो गयी तब कहने लगे चुनाव चिन्ह नहीं मिलेगा, किसी पार्टी को समर्थन कर देंगे पार्टी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष पर आदि आदि आरोप लगाने एवं समाज को गुमराह करने वाले ये भ्रष्ट राजनैतिक सौदागरों की दुकान बंद कराकर वंचित समाज को राजनैतिक हथियार देकर मजबूत किया है।

पार्टी बिना गुमराह हुए अनुशासित लोग परिवार सहित प्रशिक्षित हैं। माया, मुलायम, के जंगलराज खत्म करने एवं अपना खोया हुआ गौरवशाली इतिहास वापस पाने के लिए रात दिन मेहनत कर रहे है। ऐसे सभी कार्यकर्ताओ को समाज हमेशा याद करेगा।

पार्टी देश में पहली एक ऐसी पार्टी है जिसमे बहुत लोग अपने परिवार सहित पार्टी के पदाधिकारी बनकर जिला स्तर पर अपने सक्षम पदाधिकारी से सम्पर्क कर प्रशिणोपरान्त क्षमतानुसार जिम्मेदारी लेकर कैडर के सभी गुणों को विकसित कर ईमानदारी से अनुशासन में रहकर लक्ष्य प्राप्ति हेतु दिन रात काम कर रहे है।

पार्टी देश में पहली एक ऐसी पार्टी है जिसमे लक्ष्य प्राप्ति हेतु दुश्मन पार्टीयों को परास्त करने तथा समयानुसार राजनीतिक सहभगिता के लिए पार्टी को शक्तिशाली बनाने हेतु सटीक साझेदार भी बनती रही है।

पार्टी के कार्यकर्ता अपने सीमित साधन-संसाधनो से प्रतिदिन पार्टी के उद्देश्य, विचारधारा, निति, कार्यप्रणाली एवं सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार कर कार्यक्रम, कार्यकर्ता एवं कोष का निर्माण कर आगे लक्ष्य तरफ बढ़ रहे है।

पार्टी देश में पहली एक ऐसी पार्टी है जिसमें सुचिता एवं पंजीकरण नियमितिकरण हेतु पदाधिकारी द्वारा लिये गये रसीदों का लेखा-जोखा आय-व्यय एवं अन्य विवरण समय-समय आयोजित मिंटीगों, अधिवेशनो, शिक्षण-प्रशिक्षण कैडर कैम्पों तथा कार्यालयो में जमाकर अनुशासन का परिचय देते है। जो अब निर्वाचन आयोग द्वारा अधिकृत लेखा परिक्षक से परिक्षण कराकर जमा कराना आसान है।

पार्टी देश में पहली एक ऐसी पार्टी है जिसके पास वंचित समाज के भविष्य निर्माण सुनियोज योजनाएं है।

पार्टी देश में पहली एक ऐसी पार्टी जिसका उद्देश्य सिर्फ समाज को ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक श्रोतों की जानकारी देकर उनका अधिकार दिलाने हेतु उन्हीं के समाज से समय, पैसा, बुद्धि, हुनर को पार्टी के विकास मे लगाना है। जिससे राजनीतिक स्वालम्बन हेतु प्रशिक्षिति लोग प्रतिनिधी बने।

पार्टी देश में पहली एक ऐसी पार्टी है जिसने हजारों शिक्षित-प्रशिक्षित वक्ता तैयार कर राजनीतिक भविष्य के लिए चेतना भर रही है।

पार्टी देश में पहली एक ऐसी पार्टी है जिसमें उपेक्षित समाज के सभी उपजातियों को सवैधानिक लोकतांत्रिक तरिके से चयनित कर राजनीतिक जिम्मेदारी के लिए प्रेरित कर रही है। जिस जातिध्समाज को गुलाम बनाना हो उसके इतिहास को नष्ट कर दो और जिस देश को गुलाम बनाना हो तो उसकी संस्कृति को नष्ट कर दो।

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व एवं योजनबद्ध प्रयास से हम सबको पता चला कि भारत की प्राचीनतम् नाम श्निषाद’ है देश की प्राचीन संस्कृति श्निषाद संस्कृतिश् हैं। प्राचीनकाल (2000 वर्ष पहले में निषाद, कोल, भील यानि आपके वंशज का सत्ताध्राज था। उस समय दुनिया में 3/- में 1/- रूपया आपके भारत का चलता था। दुनिया में सहायता करते थे। तब भारत को सोने की चिडि़या कही जाती थी। श्निषाद’ जाति नहीं है बल्कि चारों वर्ण से अलग ’पंचम् वर्ण’ है। महर्षि बाल्मीकि, महर्षि वेद व्यास, प्रहलाद, रामसखा महाराज श्री गुह्यराज निषाद, निषादराज हिरण्यधनु के पुत्र अभिद्युम्न (अभय या एकलव्य, माता सत्यवती, नल निषाद, महाराजा सिंघानु निषाद, महारानी दमयन्ति, महारानी रासमणी, राय साहब रामचरण निषाद, मा. जमुना निषाद, राम देव निषाद मा. फूलन निषाद आदि ने इस वशं को सुशोभित किया है।(साभार- वैदिक एवं ब्राहमणी धर्म डा. श्री कान्त पाठक, जस्टीस आफ इण्डिया डा. अर्मत्य सेन, प्रचीन भारत का इतिहास डा. के सी श्रीवास्तवा

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व एवं योजनबद्ध प्रयास से हम सबको पता चला कि हम लोग इलाहाबाद श्रृगवेर पुर धाम किले के श्रीराम के आत्म बालसखा महाराज श्री गुह्यराज निषाद के वशंज है।

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व एवं योजनबद्ध प्रयास से हम सबको पता चला कि लोकतंत्र की स्थापना हेतु समाधान निषाद, लोचन निषाद आदि नाविकों ने हजारों अंग्रेजों को कानपुर सतीचैरा घाट पर गंगा नदी में डुबोकर मारा था। आजादी की लड़ाई के परिणाम में अंग्रेजों ने क्रूरता का अन्जाम, फांसी, गांव जला एवं उजाड़कर, क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871 लागू कर जातिगत आधार पर निषादों पर जरायम पेशा/अपराघी जनजाति घोषित कर अधिकारों से वंचित किया था। जिवकोपार्जन के संसाधन नदी, ताल, घाट, व वन को नार्दन इण्डिया फेरिज एक्ट, फिसरिजि एक्ट, फारेस्ट एक्ट, माइनिंग एक्ट 1878 आदि लागू कर उनकी संम्पत्ति से बेदखल कर आदिवासीध्जनजाति व दलितों से भी खराब जीवन जिने को मजबूर कर दिया। उक्त पेशों के छिन जाने के कारण भुखमरी-बेरोजगारी के शिकार हो चुकी हैं। किसी भी सरकार ने निषादों का अधिकार देने का काम नहीं किया।

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व एवं योजनबद्ध प्रयास से हम सबको पता चला कि विश्व के दबाव में 1931 से मिला अनु-सूचित जाति मझवार का आरक्षण भारत सरकार के द्वारा 1961 से लागू उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति की सूची में क्रमांक 53 पर मझवार सूचीबद्ध अंकित है। इनके पर्यायवाची केवट, मल्लाह, मांझी,  मुजाविर, गोड़ मझवार, बिन्द आदि को मझवार के नाम से अनुसुचित जाति का आरक्षण मिला है। क्या आप लेना चाहते है।

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व एवं योजनबद्ध प्रयास से हम सबको पता चला कि गोरखपुर मे 1 फरवरी से 10 फरवरी 2014 तक धरना-प्रदर्शन चलाने के बाद जिलाधिकारी द्वारा गोरखपुर के सभी तहसीलदारों को केवट, मलाह, मांझी आदि को मझवार का अनु.जाति का प्रमाण-पत्र जारी करने का आदेश दिया है। इसी प्रकार का आदेश पूरे प्रदेश में लागू कराने के लिए 17 फरवरी 2014 को लखनउ में मुख्यमन्त्री के आवास पर प्रदर्शन के दौरान निषाद वंशियों पर लाठी चार्ज कर सैकड़ो को घायल कर आप निषादों के पार्यवाची जातियों को मझवार अनु.सुचित जाति का आरक्षण न देने का कुचक्र सपा सरकार ने किया। विधान सभा सत्र में किसी भी पार्टी नें हम निषादों के साथ हो रहे अत्याचार, अन्याय के विरूद्ध एवं

आरक्षण के मुददे को नही उठाया। सभी पार्टीयो के मीलीभगत से हमारे समाज को बर्वाद किया जा रहा है। यदि हम सब मिलकर आरक्षण की लड़ाई नही लड़े तो बर्वाद हो जायेगे।

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व एवं योजनबद्ध प्रयास से हम लोग अपना खोया हुआ राज-पाट- अधिकार- मान-सम्मान- स्वाभिमान वापस लाना चाहते है

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व एवं योजनबद्ध प्रयास से हम सब लोगों को जानकार होशियार समझदार मतदाता राजनितिक बनाया जा रहा है।

यदि आपका उत्तर हां में है तो सभी बन्धुओं, बहनों से अनुरोध है कि राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद् एवं निषाद पार्टी द्वारा आयोजित संकल्प दिवस 13 जनवरी 2021 को गोरखपुर में संकल्प लिया है कि अपने परिवार सहित नात-रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ लाखों की जनसंख्या में हस्ताक्षर करवाकर अपने हक का आरक्षण प्राप्त करने के लिए जैसे पूनित कार्य में सहभागी बनने का संकल्प लिए ।

जनजागृति एकता विचार गोष्ठी

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